कु शानू : दुर्घटनाएँ होती रही हैं और आगे भी होती रहेंगी. हम दुर्घटनाओं को होने से रोक नहीं सकते परन्तु दुर्घटना के समय राहत और बचाव कार्यों को सुचारू रूप से अंजाम देना हमारे हाथ में है. दुर्घटना के समय कम से कम जानहानि हो इसके लिए जरूरी है कि आम लोग तथा बचाव दल आपस में हर समय जुड़े रहें तथा सूचनाओं का आदान प्रदान अच्छी गति से जारी रहे. यह सम्भव हो सकता है मोबाइल और इंटरनेट संचार माध्यमों की मदद से. लेकिन होता यह है कि जब भी कोई बड़ी दुर्घटना होती है यही दोनों माध्यम काम करना बंद कर देते हैं. भूकंप, सुनामी, बम धमाका, विमान का गिरना आदि दुर्घटनाओं के समय मोबाइल सम्पर्क का कट जाना आम बात है.
इस स्थिति से निपटने के लिए अब यूरोप के संशोधकों ने एक नई तकनीक विकसित की है. इस तकनीक की मदद से गम्भीर से गम्भीर दुर्घटना के दौरान भी बचावकर्मी अपने फोन और इंटरनेट के माध्यम से बाकी दुनिया से जुड़े रह पाएंगे.
(तकनीक का खाका बताता एक चित्र, जिसे क्लिक कर वृहद रूप में देखा जा सकता है)
DeHiGate (Deployable High Capacity Gateway for Emergency Services) नामक इस तकनीक मे एक विशेष राउटर और एक विशेष कमांड वेहिकल का इस्तेमाल किया जाता है. यह राउटर उस कमांड वाहन को किसी भी उपलब्ध तार-विहीन इंटरनेट सम्पर्क का इस्तेमाल करने की शक्ति प्रदान करता है. यहाँ तक कि उपग्रह सम्पर्क भी स्थापित किए जा सकते हैं. राउटर अपने तंत्र पर उपलब्ध बैंडविथ की गणना करता रहता है और उसमें कमी दिखाई देने पर दूसरे नेटवर्क पर चला जाता है या फिर सीधे उपग्रहों से सम्पर्क स्थापित कर लेता है. स्थानीय नेटवर्क को आपस में जुड़ा हुआ रखने के लिए शहर भर के खम्बों आदि जगहों पर नोड लगाए जाते हैं जो बैटरी से चलते हैं. इससे मोबाइल स्थानीय नेटवर्क भी बन जाता है.
इससे होता यह है कि बचाव कार्यों में लगे सुरक्षाकर्मी एक पल के लिए भी नेटवर्क से बाहर नहीं जाते. बचावकर्मी जीपीएस के माध्यम से अपनी व साथियों की भौगोलिक उपस्थिति जान पाते हैं. वे अपना खुद का स्थानीय नेटवर्क भी स्थापित कर पाते हैं. इससे ध्वस्त हो चुकी इमारत में फंसे लोगों तक पहुँचना आसान हो जाता है क्योंकि फंसे हुए लोग अपने मोबाइल के माध्यम से बाकी दुनिया से जुड़े रहते हैं.
यह तकनीक फ्रांस की कम्पनी थालेस ने विकसित की है. कुछ सम्बंधित बातें यहाँ पढ़ी जा सकती हैं.
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें